तदर्थता और बदलाव
बृजमोहन ( मोहन मेरठी )
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आज (21 जुलाई, 2020) ग्यारह वर्ष हो चुके है और मुझे आज भी याद है 21 जुलाई 2009 को दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज, ईस्ट पटेल नगर को जॉइन करना | २ वर्ष इस कॉलेज में पढ़ाने के बाद 21 जुलाई 2011 को केशव महाविद्यालय, पीतमपुरा तथा फिर २ वर्ष बाद 24 जुलाई 2013 को हंसराज कॉलेज, नार्थ कैंपस, मल्कागंज का जॉइन करना | सात वर्ष हो चुके है अब इस वर्तमान कॉलेज में |
मुझे वो दिन याद है जब पहली बार मैं प्रवक्ता के लिए साक्षात्कार देने गया था या यूँ कहिये कि भेजा गया था | मैं मेरे सीनियर सुनित कुमार (प्रवक्ता, मोतीलाल नेहरु कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय) के पास बी० के० दत्त कॉलोनी, लोधी रोड़ रहकर आर० एन० डी० (रिशर्च एंड डेवलपमेंट) के लिए तैयारी कर रहा था पिछले लगभग दो महीनों से | मई 2009, आई० आई० टी० दिल्ली से एम० टेक०, कंप्यूटर एप्लीकेशन करने के बाद मैं यही रहकर विभिन कंपनियों में साक्षात्कार दे रहा था | मेरे बड़े भाई, सतेन्द्र कुमार (अध्यापक, डी० एन० इंटर कॉलेज गुलावटी, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश) ने मुझे मेरी आई० आई० टी० की पढाई के लिए हर संभव सहायता और कोशिश की और मेरे पहले GATE और फिर CSIR-JRF की फ़ेलोशिप से मैंने अपनी पढाई पूर्ण की | कैंपस प्लेसमेंट भी हुए पर 2008 की मंदी की मार ने सभी को एक तरफ खड़ा कर दिया था, ना ही कंपनियां आ रही थी और ना ही सही सैलरी देने के लिए राज़ी थी |
दिल्ली विश्विद्यालय के गणित विभाग के तदर्थ प्रवक्ता के फॉर्म को मेरे एक दोस्त, मनोज कुमार (प्रवक्ता, देशबंधु कॉलेज, दिल्ली विश्विद्यालय) ने मुझसे ये कहकर भरवाया की जब तक तेरा मन करे तैयारी कर पर साथ में थोड़ा कमा ले ताकि तेरे किराये का भी कुछ हो जाये और घरवालो पर भी इसका भार ना पड़े | मेरा ध्यान मेरे पिता की ओर गया जिन्होंने एक मजदूर रहते हुए भी मुझे पढाया लिखाया और हर बार मेरी फीस समय पर दी | शायद मैंने उनका हाथ बटाने के लिए मन में हाँ भर ली थी | कॉलेजों से साक्षात्कार के लिए पत्र आते पर मैं नहीं जाता क्योकि मैं कंप्यूटर की किताबों में लगा हुआ था और गणित से मेरा २ वर्ष का अंतर बन चुका था |
सुनित सर मुझे हर बार जाने के लिए कहते और मैं यही बोलता कि मैं अब कंप्यूटर पढ़ रहा हूँ और एम० एस० सी० गणित किये हुए तीन साल हो चुके है | वो मेरी इस बात को नज़रंदाज़ करते और फिर कहते | बहुत सारे कॉलेजों के साक्षात्कार निकल गए और अब एक और कॉलेज का पत्र आया, फिर ना जाने सुनित सर को क्या सूझी कि शाम होते ही गणित की Real Analysis की किताब उठाकर मेरे पास बैठकर पढ़ाने लगे | शाम से रात हो गयी और मैंने काफी सारा पढ़ लिया जैसे सब वापिस याद आ रहा हो |
सुबह होते ही सुनित सर ने कहा “चल तैयार हो जा, कालिंदी कॉलेज का इंटरव्यू है !”
“हूँ, आप मानोगे नहीं, भेजकर ही रहोगे !”, मैंने थकी सी आवाज में कहा |
फिर क्या था, मैंने अपनी प्रेस की हुई चेक की कमीज़, काली जीन्स और ब्राउन जूते निकाल लिए | नहा धोकर, बालों में कंघा करने के बाद मैं चल दिया कालिंदी कॉलेज की ओर, एक हल्के डर के साथ कि कही जो रात तक तैयारी की उससे अलग पुछा तो क्या जवाब दूंगा? ऑटो लेकर मैं कालिंदी पहुंचा, वहां पहले से साक्षात्कार के लिए आये लोग बैठे थे जिनमें कुछ मेरे सीनियर और जूनियर बैठे थे जिन्होंने एम्० एस० सी० मुझसे पहले या बाद में की थी | मैं भी जाकर प्रिंसिपल रूम के बाहर रखी कुर्सी पर बैठ गया |
“अमित यार, कैसे सवाल पूछते है?” मैंने अपने एक जूनियर से पुछा |
“आप भी सर, वही पूछेंगे जो वो पूछते है!” अमित ने हँसते हुए मुझे उत्तर दिया |
“वही पूछेंगे तो ठीक है पर उसमें क्या? मैं तो सिर्फ Real Analysis ही पढ़के आया हूँ |” मैंने कहा |
“सर, जो सब्जेक्ट वो पढवाना चाहते है उसी से पूछते है”, अमित ने मेरी तरफ देखते हुए उत्तर दिया |
उसकी बातें सुनकर मैं डर रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अन्दर साक्षात्कार में वो उसी से पूछ ले जो मैंने पढ़ा है | हम सभी बाहर इंतज़ार कर रहे थे अपनी बारी आने का | जो लोग साक्षात्कार देकर निकलते उनसे सभी कुछ ना कुछ पूछते...
“कैसा रहा ?”
“क्या क्या पूछा ?”
“तेरा तो अच्छा गया होगा फिर मुहं क्यों लटका है ?”
“अरे यार, बता भी दे क्या पूछा ?”
“बड़ी जल्दी है जाने की ! पहले ये तो बता दे, कैसा चल रहा है अन्दर ?”
और ना जाने ऐसे कितने ही सवाल, साक्षात्कार देते आते लोगो से पूछ रहे थे | मैं थोड़ा शांत था क्योकि मैं ज्यादा पढ़कर नहीं आया था सभी विषयों के बारे में | बस अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था | एक चपरासी आता, हममें से नाम पुकारता और चला जाता | नाम लेते ही व्यक्ति अपने साथ लाये फोल्डर को सभालते हुए जिसमें अंक तालिका और डिग्री रखी है, को लेकर अन्दर चला जाता | मैं भी अपने काले रंग के फोल्डर को संभालकर अन्दर जाने के लिए तैयार बैठा था बस मेरा नाम बुलना बाकी था |
सात या आठ लोगो के बाद आखिरकार मेरा नंबर आया ही गया !
“बृजमोहन ?” चपरासी ने आवाज़ देते हुए हम सब की तरफ देखा |
“जी, मैं हूँ |” मैंने हाथ उठाकर चपरासी की ओर देखते हुए कहा |
चपरासी ने चलते-चलते हाथ से इशारा करते हुए कहा “यहाँ सामने से अन्दर चले जाओ |”
“ओके, थैंक यू !” मैंने अन्दर जाते हुए कहा |
छोटी सी गैलरी के बाद, अन्दर केबिन में सामने प्रिंसिपल चेयर पर डॉ० अनुला मौर्या और आगे की तरफ सीनियर टीचर डॉ० नीरा बहादुर तथा टीचर-इन-चार्ज डॉ० सुधा जैन बैठी थी |
“मे आई कम इन ?” कहते हुए हलके से गर्दन झुकाते हुए पूछा |
“हाँ आओ, प्लीज सिट डाउन.” सुधा मैडम ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा |
“बृजमोहन, तुम MSc और MTech हो, और हम ऐसे कैंडिडेट को ढूढ़ रहे है जो कंप्यूटर लैब और मैथ क्लासेस दोनों को संभाल सके !” नीरा मैडम ने मेरी और देखते हुए कहा |
मेरे मन में आवाज आ रही थी कि यही तो मैं चाहता हूँ कंप्यूटर और मैथ |
“मैथ में मैं Real Analysis करा सकता हूँ और कंप्यूटर में जो भी आप देना चाहे |” मैंने हलकी आशंका में कहा |
“ओके , Real Analysis ?” नीरा मैडम ने मेरी ओर देखते हुए कहा |
फिर होना क्या था उन्होंने मुझसे प्रश्न पूछने शुरू कर दिए | पांच - छ: सवालो के बाद वो मेरे उत्तरों से संतुष्ट थे |
“बृजमोहन, टीचिंग में तुम्हे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और ये गर्ल्स कॉलेज है तो और ज्यादा |” नीरा मैडम ने हलकी मुस्कराहट के साथ मुझसे कहा |
“ये तो अच्छा बच्चा है, कर लेगा |” सुधा मैडम ने नीरा मैडम की ओर देखते हुए कहा |
मैं भी उनकी बातों से अच्छा महसूस कर रहा था और सुनित सर को सोच रहा था जिन्होंने कल मुझे बैठाकर पढाया था | मैं ज्यादा इस बात से खुश था कि मैं कंप्यूटर लैब लूँगा अगर ये मुझे लेते है तो | थोड़ी मामूली बातों के बाद उनसे नमस्कार और धन्यवाद करके मैं बाहर आ गया |
“कैसा रहा सर ?” बहार बैठे मेरे जूनियर ने मुझसे पूछा |
“काफ़ी अच्छा रहा , लगता है लेंगे मुझे |” मैंने हलकी आवाज में गर्दन हिलाते हुए उत्तर दिया |
घर आकर थोड़ा आराम करके मैं सुनित सर से आज हुए साक्षात्कार के बारे में बात कर रहा था | उनका धन्यवाद करके मैं आगे की प्लानिंग कर रहा था कि अगर वो ले लेते है तो कैसे करूंगा वहा और यहा की तैयारी ! कुछ दिन पहले ही मैंने एक कंपनी में टेलीफोनिक साक्षात्कार दिया था तो मैं उसका भी इंतज़ार कर रहा था | कालिंदी के टीचर्स की सकारात्मक प्रतिक्रिया मुझे अच्छी प्रतीत हो रही थी | रात का खाना खाकर और काफ़ी बातें करके हम सो गए |
सुबह की हर रोज़ की क्रियाओं से मुक्त होकर हम नाश्ता करके अपने अपने कार्यों में लग गए | मैं अपनी उन्ही किताबों में और सुनित सर कॉलेज जाने के लिए तैयार | दोपहर के बाद वो कॉलेज से लोटे जैसे हमेशा आते है |
“और भई, रिजल्ट आया ?” आते ही उन्होंने मुझसे ये सवाल किया |
“हाँ सर, कालिंदी से फ़ोन आया था जॉइन करने के लिए |” मैं साधारण आवाज में उत्तर दिया |
“अरे गुड, बधाई हो, इतना क्या सोच रहा है ?” मुझे बधाई देते हुए मुझे मेरा चेहरा देखते हुए पूछा |
“सर मैं सोच रहा था कि मुझे तैयारी के लिए टाईम मिलेगा या नहीं !” मैंने उनसे कहा |
“भई पहले जॉइन तो कर अच्छा लगे तो ठीक है वरना तैयारी करना यही |” सुनित सर ने सकारात्मक भाव में कहा |
“हूँ ठीक है सर !” मैंने हलकी आवाज़ में हाँ की |
२१ जुलाई २००९ की सुबह को मैंने कालिंदी कॉलेज जाकर जॉइनिंग कर ली | सुधा मैडम ने मुझे क्या क्या सब्जेक्ट पढ़ने है वो बता दिया और टाइम-टेबल कल मिलने को कहा | उन्होंने मुझे तृतीय वर्ष की कंप्यूटर लैब और उसी वर्ष को Real Analysis पढ़ाने को दिया | मैं ये जानके खुश था कि वही मुझे मिला है जो मैंने उनसे अनुरोध किया था | एक दो विषय और दिये जो प्रथम वर्ष के थे जो भौतिकी विज्ञान के बच्चों का गणित कोर्स था |
सुधा मैडम ने मुझे तृतीय वर्ष की छात्राओं से मिला कर मेरे बारे में बताया | चूँकि मैं बहुत दुबला पतला, २५ वर्ष का था तो लड़कियां हल्के से मुस्कुरा रही थी | मैं मन में सोच रहा था कि ये तो मुझसे भी बड़ी लग रही है पर मैं ये भी ठान कर बैठा था कि मुझे मेहनत करके पढाई करनी है |
सुधा मैडम ने मुझे पहले घर पर तैयारी करके आने को कहा और लाइब्रेरी से किताबें लेने को कहा | मैं धीरे धीरे सब क्लास की छात्राओं से मिल चुका था और सब से परिचय भी कर चुका था |
अगले दिन मैं लाइब्रेरी में अकाउंट खुलवाने गया | चूँकि कालिंदी कॉलेज महिला विद्यालय था तो लाइब्रेरियन भी एक महिला थी जो हल्का नीला कुर्ता पहने अपनी कुर्सी पर बैठी थी | मैंने जाकर डेस्क पर खड़े व्यक्ति से अकाउंट खोलने के लिए कहा |
“आप ने अभी जॉइन किया है ?” डेस्क पर खड़े व्यक्ति ने पूछा |
“हाँ कल ही, मुझे किताबें चाहिए पढ़ाने के लिए |” मैंने उसकी ओर देखते हुए कहा |
मैंने अपना जॉइनिंग लैटर बढ़ाते हुए डेस्क पर सामने रख दिया |
“मैथ डिपार्टमेंट में आये हो !” मेरा जॉइनिंग लैटर देखते हुए उसने कहा |
“जी हाँ” मैंने धीमे से उत्तर दिया |
थोड़ी देर में उसने रजिस्टर में मेरे नाम की एंट्री करके पांच कार्ड डेस्क पर रख दिए | चार कार्ड्स के रंग हल्के नीले थे और एक कार्ड का रंग पीला था |
“ये लो सर आपके कार्ड, इनसे आप किताब ले सकते हो” कार्ड्स को मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए उसने मुझसे कहा |
“ये अलग रंग का कार्ड क्यों है ?” मैंने कार्ड की ओर इशारा करते हुए कहा |
“ये सर Text Book के लिए है और बाकी चार से आप कोई भी किताब ले सकते हो” हल्की मुस्कराहट के साथ उसने उत्तर दिया |
“सिर्फ पांच कार्ड ?” मैंने आश्चर्य से पूछा |
“हाँ सर, Ad-hoc को पांच ही मिलते है” उनसे बड़े विश्वास से कहा |
“अच्छा ! और Permanent को ?” मैंने जानने के लिए पूछा |
“उनको 15 मिलते है” उसने झट से उत्तर दिया |
“इतना अंतर क्यों ?” मैंने उससे उत्तर की आशा करते हुए पूछा |
“मुझे क्या पता सर ! वो मैडम बैठी है आप उनसे ही पूछ लो” मैडम की ओर इशारा करते हुए उसने मुझसे कहा |
डेस्क से थोड़ी दूरी पर सामने की ओर मैडम लाइब्रेरियन बैठी थी | मैं उनकी और बढ़ने लगा | मुझे अपनी ओर आता देख वो मुझे ही देख रही थी | मैं जाकर उनके पास रखी कुर्सी के पास खड़ा हो गया |
“नमस्कार मैम, मुझे ज़रा कार्ड्स के बारे में पूछना था !” मैंने धीरे से बढ़ती हुई तेज आवाज़ में कहा |
“हाँ बोलिए ?” मैडम ने झट से कहा |
“मैडम, adhoc चार विषय पढ़ते है और permanent तीन विषय तो ज्यादा किताबें किसको चाहिए ?” मैंने अपनी बात प्रश्नात्मक तरीके से रखी |
“देखिये मुझे इतना नहीं पता, जितना कॉलेज देता है हम उतने ही देते है |” मैडम ने एक सामने रखी फाइल को खोलते हुए कहा |
“पर मैडम क्लास में तो सिर्फ टीचर होता है adhoc या permanent नहीं !” मैंने थोड़े ऊचे स्वर में कहा |
“इसके लिए आप प्रिंसिपल से बात करिए, मुझे इतने देने के लिए ही कहा गया है” हल्के गुस्से और ऊचे स्वर में मैडम ने कहा |
“मैडम, लाइब्रेरियन आप है तो मैं तो आपको ही कहूँगा ना, मैं प्रिंसिपल के पास क्यों जाऊ ?” मैंने उनके पद को सोचके कहा |
“ठीक है, कुछ दिन बाद हमारी प्रिंसिपल के साथ मीटिंग है, मैं ये बात मीटिंग में रख दूँगी !” मुझे सांत्वना देते हुए मैडम ने मुझसे कहा |
“ये ठीक है मैडम, आप बोलिए कि जो ज्यादा विषय पढ़ता है उसे कम किताबें क्यों ?” मैंने कहते हुए पाँचों कार्ड्स अपनी कमीज़ की पॉकेट में रख लिए |
“जी सर ! मैं बोल दूँगी सब !” हलके गुस्से में मुस्कराहट के साथ मैडम ने मेरी ओर देखते हुए कहा |
“थैंक यू मैडम, नमस्कार” कहकर मैं लाइब्रेरी से चलकर स्टाफ रूम आ गया |
स्टाफ रूम आकर भी मैंने यही बातें बाकी टीचर्स के सामने भी राखी | सभी उसी तरह से बोल रहे थे कि ऐसा ही होता है, होता आया है, जो है वो ही ठीक है | पर मैं अपनी कही बातों को और आने वाले दिनों में होने वाली मीटिंग के बारे में सोच रहा था |
लगभग पांच दिन हो गए थे | मैं घर से कॉलेज के लिए निकला और पहुचकर स्टाफ रूम में प्रवेश किया | जहाँ मैथ विभाग के टीचर्स बैठते है उसी ओर लाल रंग का नोटिस बोर्ड लगा हुआ था, बैठने वाली सीट से थोड़ा ऊपर | बोर्ड पर एक नोटिस लगा हुआ था जिस पर प्रिंसिपल का हस्ताक्षर था |
नोटिस में adhoc टीचर्स को लाइब्रेरी के दिए गए पांच कार्ड्स के अलावा और पांच कार्ड्स लेने का आग्रह किया गया था |
“देखा मैडम, आ गया नोटिस, कहने से कुछ फर्क तो पड़ा” बोर्ड के पास बैठी एक मैडम को देखते हुए ख़ुशी से मैंने कहा |
“बधाई हो, चलो अब दस तो हो गए” मैडम ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा |
मेरी ख़ुशी अन्दर ही अन्दर मुझे प्रसन कर रही थी कि अब मैं, और बाकि सभी adhoc टीचर्स दस किताबें ले सकेंगे और मन ही मन लाइब्रेरियन और प्रिंसिपल मैडम को शुक्रिया कर रहा था जिनको मेरी बात समझ आ गयी थी |
बदलाव तभी संभव होते है जब बदलाव की आवश्यकता को समझा जाए | शायद मेरी बातों में वो बदलाव की आवश्यकता की गूँज थी जिस को लाइब्रेरियन मैडम और कॉलेज प्रिंसिपल ने समझ लिया था | वो समझ गई थी की क्लास के अन्दर छात्राओं के सामने खड़ा व्यक्ति सिर्फ टीचर होता है | adhoc और permanent तो यूनिवर्सिटी और सरकार द्वारा आवश्यकता के आधार पर बनाये गए नियम और नाम है | चाहे जो भी हो अगर व्यक्ति समय रहते सही बातों को कहे तो प्रभाव एक पर नहीं वरण सभी पर होता है |