top of page

स्वप्न...

कुछ तुम कहती, कुछ मैं कहता

फिर दिल तन्हा ना यूँ रहता गुलाब की हो तुम कोई कली फिर मैं भंवरा कैसे रहता |

मधुमय तन की ये अंगडाई नैनों में हाला भर लायी रसपान करो इस मधु विष का जाने कोनसा प्याला हो किसका |

करो बांहों का उदगार प्रिये छिपे मनके है हजार प्रिये सुनो मन की ये आवाज प्रिये अद्रश्य कर दो सब राज़ प्रिये

तुम हो मेरे ये हूँ मान चुका सजनी तुमको पहचान चुका नदिया सी है तेरी जुल्फे फिर मैं इनमे क्यों ना बहता |

अपना तुमको जब माना था स्वपनों में ही तो जाना था स्वपन मेरा जो टूट गया कर से प्याला ये छूट गया |

अदभुत मनोहर था दर्पण चाहत थी कर दू सब अर्पण शीतल चन्द्र की करुनाई थी आभा बन कर समाई थी |

नयनो के अलको का काजल समुद्री लहरों का आँचल जैमुनी अधरों की मुस्कान उर में लाया जैसे तूफ़ान |

जगत की अन्सुनियो को छोड़ लगाले प्रेम की ये दौड़ मैं तेरा प्रेमी एक बादल तपिश तन की मिटा पल-पल |

अंखियों ने जब आँखे खोली होंठो के अधरों थी बोली छुप गयी कहा उस पार प्रिये स्वप्नों के नये बाज़ार प्रिये |

जीवन के है अदभुत फेरे मेरे क्या है सब कुछ तेरे तुम योवन की तरुनाई हो क्यों स्वप्नों में ही आई हो |

दिन रात उदासी है मन में तृष्णा की छाया है तन में क्यों स्वप्नों ने मुझे घेरा है ले चल जहा तेरा डेरा है |

यादो के साए में हम तुम जाने रहते है क्यों गमशुम गम छोड़ के अब मुश्कान भरो दिल जुड़ने का आह्वान करो |

अधरों की कोमल काया में घने केशो की इस छाया में ज़रा बना दो स्थान मेरा होगा मुझ पर अहसान तेरा होगा मुझ पर अहसान तेरा ||

Featured Poems
Recent Poems
bottom of page