कुछ और तुम दें दो...
मेरे मन की मति को, मति कुछ और तुम दें दो
मुझे इस छोर से उस छोर की तुम अनुमति दें दो |
लहू बनकर बिसर जाऊं तेरे हृदय के कण कण में
मेरे हृदय की गति को, गति कुछ और तुम दें दो ||
मेरे स्वप्नों की अग्नि, मुझे कुछ रोकती सी हैं
में कर जाऊं न जाने क्या, मुझे ये टोकती सी हैं |
बिना पंखों के दूरी भर उड़ानें भर नहीं सकता मेरे स्वप्नों की अग्नि को ज्वाला रूप तुम दें दो ||
मेरी यादों का सागर, मुझे कुछ खिचता सा हैं
कही में डूब न जाऊं, कही कोई चीखता सा है | बिना पतवार के मंजिल, में पूरी कर नहीं सकता मेरी यादों के सागर को आँसू रूप तुम दें दो ||
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