जुबां अब बंद नहीं होती...
जुबां अब बंद नहीं होती
क्यूँ रातें कम नहीं होती
कहूँ क्या क्या तुम्हे अब मैं
ये बातें कम नहीं होती |
बाँहें करती हैं बेईमानी
नशा छा जाता रूहानी
अदाएं कुछ तो कम कर दो
मचल उठती है ज़वानी |
तुमें खुद को नहीं एह्सा
ये तुझमें तेज है कैसा
कमल की पंखुड़ी काया
कि तन लगता है महका सा |
निगाहों में जादू है क्या
बुझ गया दिल का दीया
जीने को मैंने हर एक पल
ज़हर नज़रों का है पीया |
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