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तुझे देखता हूँ तो जीता हूँ ...
- Brij Mohan Vatsal
- Jan 10, 2016
- 1 min read
तुझे देखता हूँ तो जीता हूँ

तेरे बाद न जाने क्या होगा
जिंदगी है ज़हर पर पीता हूँ
असर ना जाने क्या होगा |
चंचल मन की मेरी आशाएं
रह रह कर मुझे सताएंगी
फिर यौवन की इस काया का
परिवार ना जाने क्या होगा |
मधुमय तन की ये परछाई
बनके बादल सी छायेगी
फिर छाया की इस माया का
श्रृंगार ना जाने क्या होगा |
कुछ दूर सही पर संग चलो
मन की राह चुनने के लिए
आगें पथ के इन क़दमों का
व्यवहार ना जाने क्या होगा ||
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