वो जब कभी.....
वो जब कभी मेरे सामने
आकर बैठ जाया करती थी
बहुत चुराती थी नज़रे
पर कमबख्त मिल जाया करती थी |
बालो को अपने बाँधने को
वो देती रहती थी ऐठे
पर कमबख्त वो ऐठे भी
बार बार खुल जाया करती थी |
अपनी आँखों को छुपाने को
वो लेती थी पलकों का सहारा
पर कमबख्त वो पलके भी
शरारत कर जाया करती थी |
अब जैसे मेरी आँखों को
इसकी आदत सी हो गयी है
पर कमबख्त अब वो आती नहीं
ना जाने कहा खो गयी है |
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