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ज़िद की उड़ान

बृजमोहन ( मोहन मेरठी )
 

(हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा साल 2016 की श्रेष्ट कहानी से सम्मानित, इंद्रप्रस्थ पत्रिका में प्रकाशित)

Copyright © Brij Mohan 2015

All rights reserved.

10 जुलाई, 2015. हंसराज कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली.

 

मैं डेस्क पर बिखरे फाइल, फोल्डर, ग्लू, पेन, स्केल इत्यादि को समेट कर एक बड़े लिफाफे में डाल रहा था क्योकि समय हो गया था | माफ़ करिए समय थोड़ा ज़्यादा हो गया था क्योकि यूनिवर्सिटी के अंडर-ग्रॅजुयेट दाखिले का समय सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 1 तक का है और अब 1 बजकर 30 मिनिट  हो चुके थे | कमरा नंबर 18, जो हमें दाखिले के लिए अलॉट हुआ था वो अब एकदम खाली था शिवाय मेरे और इन इकट्ठी की गयी वस्तुओ के |

कमरे की चार खिड़किया खुली हुई थी जिनसे होकर ठंडी ठंडी हवा आ रही थी और एक मुख्य द्वार जिससे होकर कमरे का प्रवेश था | बारिश अभी अभी थमी सी थी | मेरी नज़र डेस्क की ओर थी और बस सब समेट ही चुका था कि अचानक एक मैला कुचैला सा पॉलीथीन का लिफ़ाफ़ा मेरी ओर बढ़ा | मैने गर्दन ऊपर की ओर करके, उस लिफाफे को देखते हुए, उसको पकड़े हुए एक लड़के को देखा | उसकी साँसें तेज़ थी, कपड़े बारिश और पसीने से तर थे, कमीज़ पैंट से बाहर की ओर लटक रही थी, पैरों में प्लास्टिक से निर्मित चप्पल थी और पैंट पर मिट्टी लगी हुई थी |

 

"Yes?" मैने उसकी ओर देखते हुए पूछा |

"Admission!" कहते हुए उसने लिफ़ाफ़ा मेरी ओर बढ़ाया |

"Sorry" अभी तो टाइम ओवर हो गया है |" मैने उससे कहा |

कुछ ना बोलते हुए उसने लिफ़ाफ़ा मेरी ओर थोड़ा और बढ़ाया |

मैने कुछ ना बोलते हुए उससे लिफ़ाफ़ा ले लिया और उसको खोलते हुए लड़के को देखा |

"कहा से आए हो?" मैने थमी सी आवाज़ में पूछा |

"गोंडा" दबी सी आवाज़ में उसने जवाब दिया |

मैंने उसकी 12वी की अंक-तालिका को देखकर उसकी ओर देखते हुए पूछा, "किसमे admission चाहिए ?"

"Math Honours" जल्दी से बोलते हुए उसने जवाब दिया |

मैने थोड़ा समय लेते हुए उसके बैस्ट फोर की पर्सेंटेज निकाली तो वो कॉलेज की cut-off से कम थी | उसकी ओर अंक-तालिका और लिफाफे को बढ़ाते हुए मेने कहा

"Sorry! आपकी पर्सेंटेज तो काफ़ी कम है, हमारे कॉलेज में अभी नही हो पायेंगा, आप अगली लिस्ट का इंतज़ार कर सकते है |"

अचानक से उसकी आखें नाम पड़ गयी और उसका गला जैसे भरसा गया था |

"Admission" कहते हुए उसने मेरी तरफ देखा और फिर से लिफ़ाफ़ा मेरी ओर किया |

मैं उसकी नम आँखें देखकर हैरान सा था कि वो कुछ बोल क्यू नही पा रहा था | मेरे मन में उसको और जानने का ख़याल आया तो मैने उससे पूछा

"साथ में कौन आया है?"

"कोई नही" उसने झट से हल्के गुस्से के साथ जवाब दिया |

"कोई नही मतलब! तुम अकेले आये हो ?" मैने आश्चर्य के साथ पूछा |

"हां कोई नही" उसने जवाब दिया |

"तुम कैसे आये हो?" उसकी हालत देखते हुए मैने ऐसे ही पूछा |

"पैदल" झट से उसने जवाब दिया |

"पैदल! कहा से ?" मैने आँखें सिकोडते हुए पूछा |

"गोंडा से" उनसे कहा |

"गोंडा से पैदल! मगर वो तो यहा से बहुत दूर है, ये तो उत्तर प्रदेश में है और करीब 700 किलोमीटर है ?" मैने थोड़ी बढ़ी हुई आवाज़ में कहा |

"हाँ" उनसे तुरंत कहा |

मेरे दिमाग़ में जैसे बहुत से प्रश्‍न घूमने लगे कि ऐसी क्या बात हुई है जो ये इतनी दूर से पैदल आया है और क्यू ये किसी को साथ नही लाया है |

 

 

उसकी हालत देखकर भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा था की वो सही कह रहा है | मैं उसकी ओर देखे ही जा रहा था और सोच रहा था कि मैं क्या बोलू |

"तुम पैदल क्यों आए?" मैने अचानक से पूछा |

वो चुप रहा और गर्दन नीचे की ओर करके अपने हाथ में लिए लिफ़ाफ़े को देखने लगा |

"तुम्हारे पास पैसे नही थे?" मैने फिर पूछा |

"हाँ, पैसे नही है |" दबी सी आवाज़ में उसने उत्तर दिया |

"क्यो! पापा ने पैसे नही दिए ?" मैने पूछा |

"नही" उसने सीधा सा जवाब दिया |

धीरे से मुड़ते हुए उसने अपनी आखों में आ रहे हल्के हल्के आसुओं को पोछने की कोशिश की | मैं ये देखकर हैरान सा था कि कोई भला कैसे इतनी दूर पैदल चलकर आ सकता है वो भी दाखिले के लिए !

मेरी समझ में नही आ रहा था कि मैं उसको क्या कहु और कैसे |

"इधर आओ |" मैने उसको अपनी ओर बुलाते हुए कहा |

वो हल्के हल्के से मेरी तरफ आकर चुप सा खड़ा हो गया |

"तुम्हारे पापा क्या करते है?" मैने उसके बारे में जानने के लिए पूछा |

"खेती" उसने कहा |

"तो क्या आपके पापा नही पढ़ना चाहते?" मैने पूछा |

"हाँ, वो माना करते है |" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा |

"मना क्यो करते है?" मैने झट से पूछा |

"पैसे नही है" उसने सर को झुकाते हुए कहा |

मैने उसकी अंक-तालिका पर उसका नाम पढ़ा था "कुलदीप तिवारी" जोकि सामान्य श्रेणी से प्रवेश चाहता था | मेरे मन में जैसे कई सवाल घूम रहे थे कि अगर तिवारी वर्ग से होते हुए ऐसी हालत है कि पिता के पास बेटे को पढ़ाने के लिए पैसे नही है तो वहा के दलित वर्ग के बच्चे कैसे पढ़ते होंगे !

 

शायद ये सवाल मेरे मन में उसको और जानने के लिए आतुर कर रहे थे |

तभी दरवाजे से हल्की सी आवाज़ आई और दरवाजे पर प्रवेश देने के लिए बनाए गयी Convener थी जोकि मेरे ही विभाग से सीनियर प्रोफेसर है | वो प्रवेश के लिए आगामी कट-ऑफ और प्रवेश संख्या की चर्चा करके प्रिन्सिपल रूम से वापिस आई थी |

मैं उनकी ओर बढ़ा और उस लड़के को अपनी ओर आने को कहा |

"प्रीति मैम" मैने हल्की सी आवाज़ में कहा |

"हाँ बृजमोहन! चलो चले अब तो काफ़ी टाइम हो गया है !" मेरी और देखते हुए उन्होने कहा |

"मैम ज़रा एक मिनिट" मैने उनको अंदर आने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा |

वो हल्के से अंदर आई और बोली "हाँ बोलो !"

"मैम ये लड़का गोंडा जो उत्तर प्रदेश में करीब 700 किलोमीटर दूर है वहां से पैदल आया है प्रवेश के लिए |" मैने झट से कहा |

"क्या! पैदल!" उन्होने हैरानी से उस लड़के की तरफ देखते हुए कहा |

लड़के की ओर देखते हुए उन्होने कहा "क्या बात है बेटा ? पैदल क्यू आए हो इतनी दूर से ?"

वो कुछ ना बोला तो मैने कहा "पैसे नही थे इसके पास ऐसा बता रहा है |"

मैडम उसकी ओर देखकर हैरान सी थी क्योकि उसकी हालत बहुत अच्छी नही थी जैसे कि अक्सर हमारे पास बच्चे आते है | लड़के की अंक-तालिका हाथ में लेकर उन्होने मुझसे पूछा "हमारे कॉलेज की कट-ऑफ में आ रहा है ?"

"नही मैम, काफ़ी कम है अभी" मैने उत्तर दिया |

"बेटा तुमने कुछ खाया है या नही?" उन्होने लड़के की ओर देखते हुए कहा |

उसके कुछ जवाब ना देने पर मैम ने मेरी तरफ देखते हुए कहा "बृजमोहन, वो फ्रूटी इसको दे दो ज़रा |"

मैं डेस्क की ओर बढ़ा और फ्रूटी उठा कर उसको देते हुए उससे बोला "तुम रो क्यू रहे हो , प्लीज़ चुप हो जाओ , लो ये पी लो |"

उसने धीरे से हाथ बढ़ाते हुए उसे लिया और नम आँखों से हमारी तरफ देखने लगा |

"घबराओ नही, सब ठीक है तुम्हे यहा नही तो दूसरे कॉलेज में प्रवेश मिल जाएगा |" मैने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला |

"कितनी पर्सेंटेज बन रही है इनकी?" मैडम ने मेरी ओर देखते हुए पूछा |

"मैम 90 + है " मैने उत्तर दिया |

"ये तो बहुत कम है बेटा, तुम घबराओ मत, और कॉलेज में मिल जाएगा |" मैडम ने उसे समझते हुए बोला |

"मैं देखती हू बाकी कॉलेज की कट ऑफ कि कहाँ आ सकता है तुम्हारा" ऐसा कहकर मैडम लिस्ट खोजने लगी |

हर कॉलेज की कट ऑफ हमारे पास नही थी | सिर्फ़ हमारे कॉलेज की थी तो मडैम ने मुझे उसको स्टाफ रूम ले जाने को कहा और बोला की इसको कुछ खिलाते है क्योकि इसकी हालत ठीक नही लग रही है |

मैं और वो लड़का दोनो स्टाफ रूम की तरफ बढ़ने लगे तब तक मैडम वो सारा सामान जो मैने इकट्ठा किया था कल को फिर से प्रवेश प्रक्रिया करने के लिए , प्रिन्सिपल रूम के बाहर पीए रूम में जमा कराने को चली गयी |

 

स्टाफ रूम आने से पहले मैडम उससे पूछ रही थी "कौन कौन है घर में , भाई , बहन ?"

"कोई नही" उसने कहा |

"तुम घर में अकेले हो?" मैडम ने फिर से पूछा |

"हाँ" उसने हल्की सी आवाज़ में कहा |

"तुम्हारे पिता नही पढ़ाना चाहते?" मैडम ने पूछा |

"हाँ पैसे नही है" दबी सी आवाज़ में मैडम की तरफ देखते हुए उसने कहा|

मैडम फोल्डर ज़मा करके स्टाफ रूम आ गयी थी | कॉलेज के ही रसायन विभाग से दो प्रवक्ता बैठे थे जो मैडम के बताने पर उस लड़के के लिए दूसरे कॉलेज की कट-ऑफ को इंटरनेट पर देख रहे थे | उसकी हालत देख कर वो दोनो भी कुछ ऐसे ही सवाल पूछ रहे थे जैसे मैने और मैडम ने पूछे थे |

 

तब तक मैडम ने उसके लिए कुछ खाने के लिए मंगवा दिया था और उसको कहा "बेटा घबराओ मत , पहले कुछ खालो"

वो हल्के हल्के खाने लगा तब तक हम सब एक तरफ बैठकर उसके बारे में बातें कर रहे थे और उसको जानने की कोशिश कर रहे थे |

थोड़े मानसिक मंथन के बाद हम सब उसकी ओर देखते हुए सोच रहे थे कि क्या किया जाए इस बच्चे का ?

मैडम और रसायन विभाग से दोनो में से एक महिला प्रवक्ता उसके बारे में बहुत सोच रही थी और मैं जैसे उसका विश्लेषण कर रहा था कि आख़िर क्या बात है जो ये नही बताना चाहता या नही बता पा रहा है |

"मैम, जब तक इसके परिवार से बात नही होती तब तक कुछ कह नही सकते" मैंने कहा |

"हाँ सही है बृजमोहन, इसको कहते है किसी को साथ लाने के लिए" मैडम ने मेरी ओर देखते हुए कहा |

"बेटा अभी तुम किसके पास रुकोगे यहा दिल्ली में?" मैडम ने लड़के से पूछा |

खाना खाते हुए उसने जवाब दिया "दोस्त रहते है यही"

"उनका फोन नंबर है तुम्हारे पास?" मैने उससे एकदम से पूछा |

"नही, मैं जनता हू घर का पता , मैं चला जाऊँगा वहां" उसने विश्वाश के साथ कहा |

"तुम्हारा अगर प्रवेश हो भी जाता है तो फीस कैसे भरोगे तुम?" मैने पूछा |

"मैं कर लूँगा, दोस्तों से लूँगा" उसने झट से जवाब दिया |

"बेटा यहाँ तो तुम्हे तीन साल तक पढ़ना पड़ेगा, सिर्फ़ एक बार की फीस से थोड़ी पढ़ सकते है ?" मैडम ने समझाते हुए कहा |

"नही, मैं कर लूँगा" बड़े ही विश्वाश के साथ उसने कहा |

मेरी समझ में नही आ रहा था कि आख़िर वो सोच क्या रहा है इसलिए मैं बिना उसके किसी परिवार के सदस्य से बात किया किए, कोई निर्णय नही ले पा रहा था |

"मैम, अभी इसको घर जाने के लिए बोलते है और कल किसी के साथ आने के लिए कहते है ताकि वो सही से बता सके कि आख़िर बात क्या है?" मैने मैडम को सुझाव देते हुए कहा |

"सही कह रहे हो!" मैडम ने मेरी और देखते हुए कहा |

"कुलदीप, तुम ऐसा करो, अभी घर जाओ और कल सुबह अपने दोस्तों के साथ आना, तब तक हम तुम्हारे लिए कट ऑफ देख लेंगे कि कहा तुम्हारा प्रवेश हो सकता हैं, ठीक है " मैने उसकी ओर देखते हुए कहा |

उसने सर को हिलाते हुए "हूँ " किया |

"पैसे है तुम्हारे पास जाने के लिए?" मैडम ने उससे पूछा |

उसने कोई जवाब नही दिया और चुपचाप खाना ख़तम करने में लगा रहा | थोड़ी देर तक हम सब बैठे रहे और उसको देखते रहे | जिस तरह से वो खाना खा रहा था उससे पता चल रहा था कि वो काफ़ी भूखा था | हम उसके खाने ख़तम होने का इंतज़ार कर रहे थे |

 

थोड़ी देर में उसने खाना ख़तम किया |

"ये लो, अभी घर जाओ, और कल सुबह 9 बजे अपने दोस्त के साथ आना, ठीक है!" रसायन प्रवक्ता ने 200 रुपये उसके हाथ में रखते हुए बोला |

"नही, मैं पैदल चला जाउगा!" पैसे लेने से इनकार करते हुए उसने बोला|

"बेटा रखलो, तुम चाहो तो बाद में लौटा देना" लड़के से कहते हुए उन्होने उसको हाथ में रखते हुए बोला |

"ये मेरा नंबर है, घर पहूचके अपने दोस्तों से मेरी बात कराना याद से, ठीक है" मैने उससे कहा ताकि में उसके बारे में उसके दोस्तों से जान सकू |

कल सुबह को उसको आने के लिए बोलकर हम भी अब घर जाने के लिए चलने लगे और उसे समझाते हुए कि डरो मत बेटा आपका कही ना कही हो जाएगा , ये कहते हुए बढ़ने लगे |

मैने घर आकर थोड़ा आराम किया और इसी के बारे में सोच रहा था कि कही ये बच्चा कोई गलत कदम ना उठा ले | मैं उसके फोन का इंतज़ार कर रहा था | दोपहर से शाम , शाम से रात हो चुकी थी पर फोन नही आया | रात में करीब 8 के बाद मैडम का फोन आया जो मेरे विभाग से है |

"हैलो ब्रजमोहन! फोन आया उस लड़के , कुलदीप का ?" मैडम ने मुझसे पूछा |

"नही मैम, अभी तो नही, मैं भी खुद इंतज़ार कर रहा था" मैने जवाब दिया |

"जब आए तो मुझे बताना" मैडम ने मुझसे कहा |

"हाँ मैडम, स्योर!" मैने ये कहते हुए, गुड नाइट बोलकर फोन काट दिया |

सुबह हो चुकी थी पर उसका कोई फोन नही आया | मैं चिंतित भी था और दिमाग पता नही क्या-क्या सोच रहा था | बस चाह रहा था कि वो ठीक हो |

 

 

11 जुलाई, 2015.

 

मैं सुबह उठकर कॉलेज जाने की तैयारी करने लगा और सोच रहा था कि फोन तो नही आया उसका तो कम से कम वो आज कॉलेज आ जाए |

सुबह का ब्रेकफ़ास्ट, पार्किंग से गाड़ी लेकर मैं कॉलेज को निकल गया | बीच रास्ते में पहूच जाने पर एक नये नंबर से कॉल आया | मैने सोचा शायद उसी का है पर ऐसा नही था |

"हैलो बृजमोहन, मैं पारूल बोल रही हू" लड़की की आवाज़ के साथ नाम भी सुनाई दिया |

"पारूल कौन?" मैने पूछा |

"मैं रसायन विभाग से कल मिले थे उस लड़के के बारे में बातें की थी" उन्होने कहा |

"ओ हाँ, नमस्कार मैडम, सॉरी मेरे पास आपका नंबर नही है और ना ही मैं आपका नाम जनता था" मैने कहा |

"इट्स ओके! सुनो वो लड़का आया हुआ है और उसने अपने पापा का नंबर दिया मुझे तो मैने बात की , पर मुझे तो कुछ समझ नही आया !" उन्होने कहा |

"क्या बात की आपने?" मैने जिग्यसा के साथ पूछा |

"वो लड़का कह रहा था की उसके पापा के पास पैसे नही है पर मैने जब बात की तो वो बोले की मैं इंतेज़ाम करके आता हू, आप आके बात करना मैं उसके पापा का नंबर भेज रही हू" उन्होने कहा |

"मैं बस पहूचने वाला हू, आके बात करता हू" मैने कहकर फोन काट दिया |

 

थोड़ी देर में मैं कॉलेज पहूच गया | रूम नंबर 18 में जाते ही मैने प्रीति मैडम को नमस्कार करके पूछा "कहा है वो लड़का , कुलदीप ?"

"वो अभी नीचे बैठा है रसायन विभाग की लाइब्रेरी में, वहां रेणु मैडम बात कर रही है किसी से कि कही कट ऑफ ओपन है उसके लिए"

मैडम ने मेरी तरफ देखते हुए कहा |

"मैं जाकर मिलता हू उससे क्योकि पारूल मैडम ने बात की है उसके पिता से तो उन्हे समझ नही आया उनके बारे में" मैं ये कहते हुए उठकर चलने लगा |

"ठीक है ब्रजमोहन, तुम बात करके बताना" मैडम ने मुझसे मेरे जाते हुए कहा |

मैं रसायन विभाग की लाइब्रेरी की तरफ बढ़ने लगा | वहां जाकर मैं उससे मिला और थोड़ा सकूंन महसूस किया कि वो ठीक है |

"कैसे हो कुलदीप? रात तुमने फोन नही किया ?  मैने बोला था ना कि बात कराना  अपने दोस्तों में से किसी से भी " मैने उससे पूछा |

"सर वो माना कर रहे थे किसी टीचर से बात करने के लिए कि क्या बात करेंगे" उसने मेरी तरफ देखते हुए जवाब दिया |

"अरे! ऐसा क्या था जो बात नही की, बात तो कर सकते थे" ऐसा कहते हुए मैने उसकी और देखा |

मैडम ने मुझसे अभी कहा थे की उसने एक बहुत अच्छी कविता भी लिखी हुई है मैगज़ीन के अंतिम पेज पर तो मैने वो मैगज़ीन उठा कर देखी और पढ़ कर बोला "तुम लिखते भी हो ? गुड !"

"सिर्फ़ लिखते हो या गाते भी हो" थोड़ा बात करने के लिए उससे पूछा |

"हाँ सर गाता भी हू" बहुत विश्वाश के साथ उसने कहा और कवि कुमार विश्वाश के गाने के तरीके में कुछ पंक्तिया गाकर सुनाई |

"ये तुमने लिखी है या कुमार विश्वाश की लिखी हुई है?" मैं पूछा, क्योकि वो कविता उसकी नही थी उसमें कवि की छाप भी थी जो अक्सर अंतिम पंक्तियों में होती है |

"तुम्हारे पापा का नंबर दो मुझे मैं बात करता हू उनसे और तुम यही इंतज़ार करो" मैं ये कहकर और नंबर ले कर स्टाफ रूम में उसके पिता से बात करने के लिए चल दिया |

 

"हेलो रमेश तिवारी जी बोल रहे है?" मैने फ़ोन मिलाकर कहा |

"जी हाँ बोल रहा हू" रमेश जी जो कुलदीप के पिता है, ने उत्तर दिया |

"नमस्कार रमेश जी, मैं ब्रजमोहन बोल रहा हूँ, हंसराज कॉलेज से, यहाँ असिस्टेंट प्रोफेसर हूँ और आपका बेटा हमारे पास आया हुआ है" मैने कहा |

"जी सर" पिता ने बोला |

"रमेश जी हमें बच्चे का समझ नही आ रहा है क्योकि वो कुछ ज़्यादा नही बता रहा है, वो यहा प्रवेश चाहता है पर उसकी पर्सेंटेज थोड़ी कम है पर दूसरे कॉलेज में हो जाएगा शायद " मैने प्रश्णात्मक भाव में कहा |

"सर ऐसा है कि अभी तो हम नही आ सकते क्योकि आज बेटी का प्रयोगात्मक परीक्षा है, मैं सर मंगलवार तक आ जाऊंगा" पिता ने कहा |

ये सुनते ही मेरे दिमाग में प्रश्‍न उठने लगे | इनकी बेटी ! पर कुलदीप ने तो कहा था की वो अकेला है और उसके पिता पढ़ाना नही चाहते | पर ये तो सब अलग है उसके पिता तो अपनी बेटी को भी पढ़ा रहे है जोकि कुलदीप ने नही बताया |

"आपकी बेटी है?" मैने आश्चर्य से पूछा |

"हाँ सर, कुलदीप से बड़ी बेटी है, आज उसका एम० ए० हॉम साइंस का एक्ज़ाम है" पिता ने उत्त्तर दिया |

"पर रमेश जी, कुलदीप कह रहा था की आप उसे पढ़ाना नही चाहते!" मैने पूछा |

"ऐसा नही है सर, ये लड़का ज़िद करके घर से भाग गया, मैं तो अपनी बेटी को भी पढ़ा रहा हू और उसे भी पढ़ाना चाहता हूँ" पिता ने कहा |

"तो फिर बात क्या है?" मैने और जानने के लिए पूछा |

"सर मैं यहा पढ़ने के लिए कह रहा हूँ और वो ज़िद करके यहाँ से भाग गया, दिल्ली का बहुत ज़्यादा खर्चा है इसलिए मैं नही कर सकता वहा का वहन" पिता ने सीधा सा जवाब दिया |

 

अब मुझे बात साफ होती दिख रही थी कि वो ज़िद के कारण यहाँ भाग कर आया है और हमसे ना जाने कितने झूठ बोल चुका है | पिता से बात करने के बाद मैने उसे बुलाया और मैडम को भी सारी बात बताई कि जो हम समझ रहे है वैसा कुछ भी नही है और सिर्फ ज़िद के कारण वो यहाँ भाग कर आया है |

उसको बुलाकर, उसको बहुत समझाया कि पिता जो अपनी बेटी को पढ़ा रहा हैं वो तुम्हे भी पढ़ाएगा पर उसके लिए तुम्हे उनका कहना भी मानना पड़ेगा | ज़िद हमे कैसे ग़लत रास्ते पर ले जाती है ये तुम अपनी ही बात से समझ सकते हो कि तुमने हमसे सब झूठ बोला |

पारूल मैडम तो उसकी फीस भरने को मुझसे कह चुकी थी | प्रीति मैडम उसके होस्टल की फीस माफ़ कराने के लिए भी एक कॉलेज में बात कर चुकी थी | रेणु मैडम एक कॉलेज के प्रिन्सिपल से उसके बारे में सोचने के लिए भी बात कर चुकी थी |

पर अब सब जैसे बेकार था क्योकि झूठ पर खड़ी की गयी दीवार ढह चुकी थी | फिर भी उस बच्चे को मैने ग़लत मानकर उसका अपमान नही किया बल्कि उसे समझकर वापिस लोटने को कहा और उसके पिता से उसे ना डाटने के लिए कहकर उसे सपोर्ट करने के लिए कहा |

 

दो दिन बाद अपने पिता के नंबर से उसने मुझे कॉल किया

"हैलो सर, मैं कुलदीप बोल रहा हूँ, मैं घर आ गया हू" उसने बोला |

"ठीक है कुलदीप, अब वहां मन लगा के पढ़ो और आगे बढ़ो" मैने विश्वाश के साथ कहा |

 

"Thank you sir" उसने कहा |

 

उसके इन अंतिम शब्दो से मैं समझ गया था कि वो अब जान गया है कि उसे क्या करना है |

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